Mehandipur Balaji Temple: भारत के राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदीपुर बालाजी का एक बहोत ही अद्भुत मंदिर है। जिसमे हर दिन लाखों लोग दर्शन तथा अपने कष्टों का निवारण करने के लिए आते है। जहाँ की मान्यता है की यहाँ भूत प्रेत बाधा जैसे कष्टों से मुक्ति मिलती है। तो चलिए जानते है श्री मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के इस धाम की कथा और अन्य तथ्य।
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मेहंदीपुर बालाजी के नियम
संशोधित नियम
1. घाटा मेंहदीपुर बालाजी में दर्शनार्थ एवं रोग-निवृति हेतु आने वाले यात्रीगणों को आवश्यक जानकारी प्राप्त करने कार्यालय में सम्पर्क स्थापित करना हेतु स्थानीय पूछताछ की चाहिए।
2. यात्री को अपने सामान आदि की सुरक्षा का ध्यान स्वयं रखना चाहिए। मंदिर या धर्मशाला के किसी भी व्यक्ति की इस सम्बन्ध में कोई भी जिम्मेदारी नहीं होगी।
3. प्रातः काल एवं सायंकाल आरती के समय सभी यात्रियों को श्री महाराज के दरबार में अनिवार्य रूप से आकर, जब तक महाराज की आरती होती रहे तब तक एकाग्र मन से हरि कीर्तन व हरि गुणगान करते रहना चाहिए।
4. मेले और उत्सव के समय सभी यात्रियों को स्वयं अनुशासित और व्यवस्थित रहकर स्वयंसेवकों के कार्य में सहयोग देना चाहिए।
5. समस्त यात्रियों का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वे सभी रोगियों के साथ सहानुभूति व सहयोग का व्यवहार करें।
6. आरती के बाद सभी यात्रियों को श्री महंतजी महाराज तथा अन्य भक्तगणों के साथ मिलकर दैनिक प्रार्थना गानी चाहिए।
7. अपना प्रसाद पाने के लिए किसी भी यात्री को गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। अपने स्थान पर ही शांतिपूर्वक खड़े रहकर सभी यात्रियों को अपना प्रसाद लेना चाहिए।
8. प्रत्येक यात्री को स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर, शुद्ध भावना से मन्दिर में आना चाहिए क्योंकि भाव में है सिद्धि है।
9. पुरुषों को महिलाओं के पीछे खड़े होना चाहिए। छोटे बच्चों को घर पर ही रखना चाहिए क्योंकि मंदिर में मल-मूत्र से अपवित्रता फैलने का भय रहता है।
10. जिन रोगियों पर मार पड़ रही हो, उनके लिए पर्याप्त स्थान छोड़ देना चाहिए और उस समय उपस्थित सभी यात्रियों का कर्तव्य हो जाता है कि श्रीमहाराज के जयकारों और भजनों के अतिरिक्त संकट वाले रोगी से व्यर्थ का वाद विवाद न करें जिससे उनके कष्ट निवारण में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित न हो।
11. यात्रियों का महिलाओं के प्रति अभद्र व्यवहार नहीं होना चाहिए। न किसी प्रकार की हँसी-मजाक ही करना चाहिए और न किसी के साथ झगड़ा-फसाद करना चाहिए।
12. आरती समाप्त होने के पश्चात् सभी यात्रियों को तब तक शांतिपूर्वक बैठे रहना चाहिए जब तक कि श्री महाराज जी प्रेतराज सरकार के दरबार में न पधार जाएं। बीच में ही उठकर गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए।
13. समस्त यात्रियों को श्री महंतजी महाराज के पीछे पीछे नम्रतापूर्वक श्री प्रेतराज सरकार के दरबार में जाना चाहिए और भक्ति-प्रेम सहित स्तुति और भजन गाने चाहिएँ। परस्पर व्यर्थ के वाद-विवाद नहीं करने चाहिएँ।
14. मध्याह्न 2 बजे से सायं 4 बजे तक श्री प्रेतराज सरकार के मंदिर में समस्त यात्रियों को एकाग्रचित होकर महाराज की स्तुति प्रेमपूर्वक गानी चाहिए क्योंकि यह समय उनके दरबार का है।
15. मंदिर में लेटना या पैर फैलाकर नहीं बैठना चाहिए।
16. यात्रीगण श्री बालाजी महाराज को स्वयं अपने हाथ से जल न चढ़ाएँ । अपना जल मन्दिर के पुजारियों या कर्मचारियों को दे दें। वे उनका जल श्री महाराज के चरणों में चढ़ा देंगे तथा कुण्डी से जल लेकर दे देंगे।
17. यात्रियों को मुख्य देवालय की परिधि (कटघरे) के अंदर प्रवेश करना वर्जित है। उन्हें जो भी प्रसाद अथवा भेंट आदि चढ़ानी हो वह पुजारी के हाथ अंदर भेज देनी चाहिए। वे यात्रियों का प्रसाद-भेंट आदि बाबा के चरणों में चढ़ाकर भोग लगा देंगे।
18. यात्रियों को अपने हाथ से कोई भी पूजन सामग्री स्पर्श नही करनी चाहिए। न भोग लगाना और न चोला ही चढ़ाना चाहिए।
19. जिस किसी भी यात्री को सवामनी, भण्डारा, ब्रह्म भोज हवन आदि करवाना हो उन्हें श्री महंतजी महाराज की सेवा में जाकर इस सम्बन्ध में उनकी सलाह लेनी चाहिए।
20. रोगी स्त्रियों के साथ अनिवार्य रूप से कोई पुरुष रहना चाहिए। अकेले मंदिर या धर्मशाला में रहना वर्जित है।
21. पागल, मृगी तथा मूर्छा आदि के बीमारों के रहने का प्रबन्ध स्वयं करना चाहिए ताकि वे किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु को हानि न पहुँचा सकें।
22 रजस्वला स्त्रियों को ६ दिन तक मंदिर में नहीं आना चाहिए और तीन दिन तक पेशी के लड्डू, जल, आदि कुछ नहीं लेना चाहिए। भभूति
23. किसी भी स्त्री को, किसी भी देवता को या किसी भी देवता के चरणों को अपने हाथ से स्पर्श नहीं करना चाहिए और न किसी भी देवता पर अपने हाथ से जल ही चढ़ाना चाहिए और न कुण्डी से जल निकालना चाहिए।
24. समस्त स्त्री-पुरुषों को पूर्ण ब्रह्मचर्य के साथ रहना व धरती पर सोना चाहिए। प्याज-लहसुन आदि कभी नहीं खाने चाहिए।
25. मंदिर में एवं मंदिर के सामने धूम्रपान सर्वथा वर्जित है और शराब पीकर भी मंदिर के अंदर प्रवेश सर्वथा वर्जित है।
26. अपने भजन एवं पूजन सामग्री के अतिरिक्त व्यर्थ का कोई भी सामान मंदिर में नहीं ले जाना चाहिए। शस्त्र एवं रेडियो इत्यादि लेकर मंदिर में प्रवेश तथा कैमरे से मंदिर के अंदर, बाहर जाना या किसी भी रोगी का पेशी लेते हुए किसी प्रकार का फोटो खींचना आदि सभी अनुचित कार्य सर्वथा वर्जित हैं।
27. संकट मुक्ति के लिए दी गई अर्जी में सवा सेर लड्डु, सूखे सवा सेर चावल और सूखे सवा सेर उड़द होने चाहिए।
मेहंदीपुर बालाजी की कहानी / कथा
गीता में भगवान् ने कहा है-“जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर अवतार लेकर भक्तों के दुःख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है।” भक्त-भय-भंजन, मुनि-मन रंजन अंजनीकुमार बालाजी का घाटा मेंहदीपुर में प्रादुर्भाव इसी उद्देश्य से हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम ने परम प्रिय भक्त शिरोमणि पवनकुमार की सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया- “हे पवनपुत्र! कलियुग में तुम्हारी प्रधानदेव के रूप में पूजा होगी। ” घाटा मेंहदीपुर में भगवान महावीर बजरंग बली का प्रादुर्भाव वास्तव में इस युग का चमत्कार है।
राजस्थान राज्य के दो जिलों (सवाई माधोपुर व दौसा) में विभक्त घाटा मेंहदीपुर स्थान बड़ी लाइन के बांदीकुई स्टेशन से जो कि दिल्ली, जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद लाइन पर है, २४ मील की दूरी पर स्थित है। इसी प्रकार बड़ी लाइन के हिंडोन स्टेशन से भी यहाँ के लिए बसें मिलती हैं। अब तो आगरा, मथुरा, वृंदावन, अलीगढ़ आदि से सीधी बसें जो जयपुर जाती हैं बालाजी के मोड़ पर रुकती हैं। फ्रंटीयर मेल से महावीरजी स्टेशन पर उतरकर भी हिंडोन होकर बस द्वारा बालाजी पहुँचा जा सकता है। हिंडोन सिटी स्टेशन पश्चिम रेलवे की बड़ी लाइन पर बयाना और महावीरजी स्टेशनों के बीच दिल्ली, मथुरा, कोटा, रतलाम, बड़ौदा, मुंबई लाइन पर स्थित है। हिंडोन से सवा घण्टे का समय बालाजी तक बस द्वारा लगता है। यह स्थान दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ बहुत आकर्षक दिखाई पड़ता है। यहाँ की शुद्ध जलवायु और पवित्र वातावरण मन को बहुत आनंद प्रदान करता है। यहाँ नगर-जीवन की रचनाएँ भी देखने को मिलेंगी।
यहाँ तीन देवों की प्रधानता है- श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्रीकोतवाल (भैरव)। यह तीन देव यहाँ आज से लगभग १००० वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं। सर्व श्री गणेशपुरी जी महाराज (भूतपूर्व सेवक) श्री किशोरपुरीजी महाराज (वर्तमान सेवक)। यहाँ के उत्थान का युग श्री गणेशपुरी जी महाराज के समय से प्रारंभ हुआ और अब दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। प्रधान मंदिर का निर्माण इन्हीं के समय में हुआ। सभी धर्म शालाएँ इन्हीं के समय में बनीं। इस प्रकार इनका सेवाकाल श्री बालाजी घाटा मेंहदीपुर के इतिहास का स्वर्ण युग कहलाएगा।
प्रारंभ में यहाँ घोर बीहड़ जंगल था। घनी झाड़ियों में शेर चीते, बघेरा आदि जंगली जानवर पड़े रहते थे। चोर डाकुओं का भी भय था। श्री महंतजी महाराज के पूर्वजों को जिनका नाम अज्ञात है, स्वप्न हुआ और स्वप्न की अवस्था में ही वे उठकर चल दिए। उन्हें पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे हैं और इसी दशा में उन्होंने एक बड़ी विचित्र लीला देखी। एक ओर से हजारों दीपक जलते आ रहे हैं। हाथी-घोड़ों की आवाजें आ रही हैं और एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है। उस फौज ने श्रीबालाजी महाराज की मूर्ति की तीन प्रदक्षिणाएं की और फौज के प्रधान ने नीचे उतरकर श्री महाराज की मूर्ति को साष्टांग प्रणाम किया तथा जिस रास्ते से वे आए थे उसी रास्ते से चले गए। गोसाँई जी महाराज चकित होकर यह सब देख रहे थे। उन्हें कुछ डर सा लगा और वे वापिस अपने गाँव चले गए किन्तु नींद नहीं आई और बार-बार उसी विषय पर विचार करते हुए उनकी जैसे ही आँखें लगी उन्हें स्वप्न में तीन मूर्तियाँ, उनके मन्दिर और * विशाल वैभव दिखाई पड़ा और उनके कानों में यह आवाज आई-” उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करो। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा।” यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। गोसाँई जी ने एक बार भी इस पर ध्यान नहीं दिया। अन्त में श्री हनुमान जी महाराज ने इस बार स्वयं उन्हें दर्शन दिए और पूजा का आग्रह किया।
दूसरे दिन गोसाँई जी महाराज उस मूर्ति के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि चारों ओर से घंटा घड़ियाल और नगाड़ों की आवाज आ रही है किंतु दिखाई कुछ नहीं दिया। इसके बाद श्री गोसाँई जी ने आस-पास के लोग इकट्ठे किए और सारी बातें उन्हें बताईं। उन लोगों ने मिलकर श्रीमहाराज की एक छोटी सी तिवारी बना दी और यदा-कदा भोग प्रसाद की व्यवस्था कर दी कई चमत्कार भी श्री महाराज ने दिखाए किंतु यह बढ़ती हुई कला कुछ विधर्मियों के शासनकाल में फिर से लुप्त हो गई। किसी शासक ने श्री महाराज की मूर्ति को खोदने का प्रयत्न किया। सैकड़ों हाथ खोद लेने पर भी जब मूर्ति के चरणों का अन्त नहीं आया तो वह हार मानकर चला गया। वास्तव में इस मूर्ति को अलग से किसी कलाकार ने गढ़कर नहीं बनाया है, अपितु यह तो पर्वत का ही अंग है और यह समूचा पर्वत ही मानों उसका ‘कनक भूधराकार’ शरीर है। इसी मूर्ति के चरणों में एक छोटी-सी कुण्डी थी जिसका जल कभी बीतता ही नहीं था।
Secretes of Mehandipur Balaji Temple – मेहंदीपुर बालाजी का रहस्य
रहस्य यह है कि महाराज की बाईं ओर छाती के नीचे से. एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती। इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई। वि.सं. 1979 में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों में भरकर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से आदमी चल दिए। चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे तो रेलवे अधिकारियों ने चोले का लगेज तय करने हेतु उसे तोला किंतु वह तुलने में ही नहीं आया। कभी एक मन बढ़ जाता तो कभी एक मन घट जाता। अंत में हारकर चोला वैसे ही गंगाजी को सम्मान सहित भेज दिया गया। उस समय हवन, ब्राह्मण भोजन एवं धर्म ग्रंथों का पारायण हुआ और नए चोले में एक नई ज्योति उत्पन्न हुई जिसने भारत के कोने-कोने में प्रकाश फैला दिया।
यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि मूर्ति के अतिरिक्त किसी व्यक्ति विशेष का कोई चमत्कार नहीं है। क्या है सेवा, श्रद्धा और भक्ति ? स्वयं श्री महंत जी महाराज भी इस विषय में उतने ही स्पष्ट हैं जितने अन्य यात्रीगण। यहाँ सबसे बड़ा असर सेवा और भक्ति का ही है। चाहे कोई कैसा भी बीमार क्यों न हो, यदि वह सच्ची श्रद्धा लेकर आया है तो श्री महाराज उसे बहुत शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करेंगे। इसमें कोई सन्देह नहीं ।
भूत-प्रेत की बाधा, पागलपन, मृगी, लकवा, टी.बी. बाँझपन या अन्य किसी भी प्रकार की कोई बीमारी क्यों न हो अति शीघ्र दूर हो जाती है। यद्यपि हम लोग भौतिक विज्ञान के युग में रह रहे हैं और देवता या भूत-प्रेतादि में विश्वास नहीं करते हैं किंतु शायद श्री बालाजी के स्थान पर आकर आप अपना सारा विज्ञान भूल जाएँगे। बड़े-बड़े विज्ञानी विचारक भी यहाँ श्री महाराज के चरणों की शरण में आकर सब कुछ भूल जाते हैं और तन-मन से श्री चरणों के भक्त बन जाते हैं।
मेहंदीपुर बालाजी के परहेज
यदि आप या कोई और मेहंदींपुर श्री बालाजी के सिर्फ दर्शन करना चाहता है तो कृप्या कर के कम से कम एक सप्ताह पहले से ही मादक वस्तुओं जैसे : लह्सुन, प्याज, अण्डा, माँस और शराब का त्याग जरुर कर दे.
संकट काट जाने पर रोगी को 41 दिनों तक परहेज करना चाहिए.
सफेद वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जैसे – दूध, दही, मूली, केला, इत्यादि.
चावल, उडद आदि से बनीं हुई कोई भी वस्तु नहीं खाने चाहिए.
तेल, खटाई, व मिर्च का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
तेल, साबुन, काली मिर्च, लौंग व सरसों इत्यादि को श्री बालाजी मन्दिर से पढवा कर ही इस्तेमाल करना चाहिए.
खाने लायक सभी वस्तुओं में भभूति मिला कर ही खाने चाहिए.
अखण्ड ज्योति जला कर व्रत धारण करना बहोत शुभ होता है.
सुबह-शाम गीता-पाठ व पूजा-पाठ करना चाहिए.
ब्रह्मचर्य का पूर्ण निष्ठा से पालन करते हुए जमीन पर सोना चाहिए.
जरुरत पढ़ने पर ही घर से बहार निकलना चाहिए.
41 दिनों के नियम पुरे होने बाद किसी प्रतिष्ठित ब्रहामण द्वारा श्री बालाजी का हवन करवाना चाहिए, हवन हो जाने के बाद रोगी कहीं भी आ जा सकता है, कुछ भी खा सकता है परन्तु – मादक वस्तुओं जैसे – लह्सुन, प्याज, अण्डा, माँस और शराब का सेवन नहीं कर सकता.
॥ जय श्री राम ॥
जयपुर से मेहंदीपुर बालाजी की दूरी
जयपुर से मेहंदीपुर बालाजी की दूरी लगभग 110 किलो मीटर है। जिसे तय करने में लगभग 2 घंटे 30 मिनट का समय लग जाता है। वही अगर आप ट्रेन से आ रहे हो तब आपको सबसे नजदीक बांदीकुई नाम का स्टेशन मिलता है जो की श्री बालाजी धाम से 36 किलो मीटर है। वहां से आने जाने के लिए निरंतर टैक्सी सर्विस मौजूद नहीं।
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